रैयामपूर्वी पंचायत में कई महानुभाव ये वहम पाल बैठे थे कि “हम नही तो कोई नही “ आज इस सिद्धान्त वाले कुछ लोग मुँह छुपा कर किसी कोने में दुबक गए है । पूरी पंचायत ने ये देख भी लिया और जान भी लिया कि विभीषण कौन है ।
जिन लोगों को लगता था कि राजनीति उनकी बपौती है आज उनके मुंह पर करारा तमाचा पड़ गया । पंचायत के दो युवा नेता भगवंत ठाकुर (भगवान बाबू) और दयानिधि मिश्र ने ये साबित कर दिया कि पदनधोत वालो कि कोई अहमियत नही रह गई है।
गांव में चाणक्य बनाने वाले आज दैत्य गुरु शुक्राचार्य बनकर बैठे हुए है । वही दूसरी ओर युवाओ को साथ लेकर चलने वाले दोनों प्रतयाशी ने अपना झंडा गाड़ दिया । जहां भगवान बाबू ने जीत हासिल किया वहीं दयानिधि ने दूसरा स्थान प्राप्त किया और ये साबित किया कि आज भी कुछ लोग ऐसे है जो बिकाऊ नही है । लालू काका (लालू ठाकुर) जिनको यही पदनधोत वाले बिरोध कर मुखिया नही बनने दिया था कल उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उनका पुत्र भगवान बाबू ने विजय प्राप्त कर उनको सच्ची श्रद्धांजलि दी ।
ये जीत पूरे गांव की जीत है और अब "हम नही तो कोई और नही " वाले जो भी लोग है ।
उनको ये समझ जाना चाहिए कि ये परिवर्तन की हवा है इसे स्वीकार कर ले नही तो कहीं ऐसा ना हो कि इस हवा में उनकी समस्त अस्तित्व को ही उराकर रख दे ।
भगवान बाबू को जीत की शुभकामना के साथ ये सलाह भी दूंगा की जिन युवाओ के बल पर असंभव जैसे कार्य को उन्होंने संभव किया उन युवाओं का संग बना कर रखे ।
साथ ही दयानिधि जी की जितनी सरहना की जाए कम है क्योंकि नोटो की बारिश में भी उन्होंने बेदाग राजनीति कर अपना दामन बचाए रखा ।
🖋️काशी मिश्र
नोटों की बारिश के बीच दयानिधि जी ने अगर अपना दामन बेदाग रखा तो वे "बेपद" भी हुए। जनता ने क्या देखा-किया ? 5 साल तक लगातार मेहनत से मुखिया पद नहीं मिलता। मुखिया बनने के लिए 2 महीने की धमाचौकड़ी ही काफी है। दो महीने की कूद-फांग से एक हज़ार से ज्यादा मतदाता प्रभावित हुए, लेकिन उन्हें दयानिधि का काम नहीं दिखा।
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